When you hear the word nature, what do you think it is? Do you think it is essential? Nature is everything that was put on this planet whether it is the sustenance we eat, the water we drink, or the wood we use to construct our homes. Others may think nature is only the seas and the backwoods, yet regardless of what you think nature is we as a whole should deal with it since it was given to us. The early pioneers didn’t generally consider nature the wellspring of life on the fact that the nature that they lived with was so tremendous thus untouched they never envisioned that what they did to it would hurt it in any capacity. You can read more about nature and get to feel it from the Beautiful Poem on Nature in Hindi font language that is on the internet. You can also share them with your friends and closed ones. Here we’ve added A Beautiful Nature Poem in Hindi Language for Children, प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी कवितायेँ, Environment Poem on Trees in Hindi, Prakriti Par Kavita, Beauty of Nature Poetry in Hindi, Short Hindi Kavita on Nature and many more.
Beautiful Poem on Nature in Hindi | प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी कवितायेँ
1) प्रकृति की सुंदरता पर हिंदी कविता
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे
ये हवाओ की सरसराहट,
ये पेड़ो पर फुदकते चिड़ियों की चहचहाहट,
ये समुन्दर की लहरों का शोर,
ये बारिश में नाचते सुंदर मोर,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।ये खुबसूरत चांदनी रात,
ये तारों की झिलमिलाती बरसात,
ये खिले हुए सुन्दर रंगबिरंगे फूल,
ये उड़ते हुए धुल,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।ये नदियों की कलकल,
ये मौसम की हलचल,
ये पर्वत की चोटियाँ,
ये झींगुर की सीटियाँ,
कुछ कहना चाहती है हमसे,
ये प्रकृति शायद कुछ कहना चाहती है हमसे।।
2) वसंत कविता हिंदी में
बागो में जब बहार आने लगे,
कोयल अपना गीत सुनाने लगे,
कलियों में निखार छाने लगे,
भँवरे जब उन पर मंडराने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।खेतो में फसल पकने लगे,
खेत खलिहान लहलाने लगे,
डाली पे फूल मुस्काने लगे,,
चारो और खुशबु फैलाने लगे
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।आमो पे बौर जब आने लगे,
पुष्प मधु से भर जाने लगे,
भीनी भीनी सुगंध आने लगे,
तितलियाँ उनपे मंडराने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।सरसो पे पीले पुष्प दिखने लगे,
वृक्षों में नई कोंपले खिलने लगे,
प्रकृति सौंदर्य छटा बिखरने लगे,
वायु भी सुहानी जब बहने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।धूप जब मीठी लगने लगे,
सर्दी कुछ कम लगने लगे,
मौसम में बहार आने लगे,
ऋतु दिल को लुभाने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।चाँद भी जब खिड़की से झाकने लगे,
चुनरी सितारों की झिलमिलाने लगे,
योवन जब फाग गीत गुनगुनाने लगे,
चेहरों पर रंग अबीर गुलाल छाने लगे,
मान लेना वसंत आ गया… रंग बसंती छा गया।
3) प्रकृति की सुंदरता पर कविता
माँ की तरह हम पर प्यार लुटाती है प्रकृति
बिना मांगे हमें कितना कुछ देती जाती है प्रकृति।
दिन में सूरज की रोशनी देती है प्रकृति
रात में शीतल चाँदनी लाती है प्रकृति।
भूमिगत जल से हमारी प्यास बुझाती है प्रकृति
और बारिश में रिमझिम जल बरसाती है प्रकृति।
दिन-रात प्राणदायिनी हवा चलाती है प्रकृति
मुफ्त में हमें ढेरों साधन उपलब्ध कराती है प्रकृति।
कहीं रेगिस्तान तो कहीं बर्फ बिछा रखे हैं इसने
कहीं पर्वत खड़े किए तो कहीं नदी बहा रखे हैं इसने।
कहीं गहरे खाई खोदे तो कहीं बंजर जमीन बना रखे हैं इसने
कहीं फूलों की वादियाँ बसाई तो कहीं हरियाली की चादर बिछाई है इसने।
मानव इसका उपयोग करे इससे, इसे कोई ऐतराज नहीं
लेकिन मानव इसकी सीमाओं को तोड़े यह इसको मंजूर नहीं।
जब-जब मानव उदंडता करता है, तब-तब चेतवानी देती है यह
जब-जब इसकी चेतावनी नजरअंदाज की जाती है, तब-तब सजा देती है यह।
विकास की दौड़ में प्रकृति को नजरंदाज करना बुद्धिमानी नहीं है
क्योंकि सवाल है हमारे भविष्य का, यह कोई खेल-कहानी नहीं है।
मानव प्रकृति के अनुसार चले यही मानव के हित में है
प्रकृति का सम्मान करें सब, यही हमारे हित में है।
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4) सुन्दर धरती कविता
हे भगवान् तेरी बनाई यह धरती, कितनी ही सुन्दर
नए – नए और तरह – तरह के
एक नही कितने ही अनेक रंग
कोई गुलाबी कहता
तो कोई बैंगनी, तो कोई लाल
तपती गर्मी मैं
हे भगवान् , तुम्हारा चन्दन जैसे वृक्ष
सीतल हवा बहाते
खुशी के त्यौहार पर
पूजा के वक़्त पर
हे भगवान् , तुम्हारा पीपल ही
तुम्हारा रूप बनता
तुम्हारे ही रंगो भरे पंछी
नील अम्बर को सुनेहरा बनाते
तेरे चौपाये किसान के साथी बनते
हे भगवान् तुम्हारी यह धरी बड़ी ही मीठी
5) Small Poem on Nature in Hindi Characters
सुन्दर रूप इस धरा का,
आँचल जिसका नीला आकाश,
पर्वत जिसका ऊँचा मस्तक,
उस पर चाँद सूरज की बिंदियों का ताज।नदियों-झरनो से छलकता यौवन
सतरंगी पुष्प-लताओं ने किया श्रृंगार
खेत-खलिहानों में लहलाती फसले
बिखराती मंद-मंद मुस्कान।हाँ, यही तो हैं,……
इस प्रकृति का स्वछंद स्वरुप
प्रफुल्लित जीवन का निष्छल सार।
6) Prakriti Ki Kali Ghata Par Kavita
काली घटा छाई हैं
लेकर साथ अपने यह
ढेर सारी खुशियां लायी हैं
ठंडी ठंडी सी हवा यह
बहती कहती चली आ रही हैं
काली घटा छाई हैं
कोई आज बरसों बाद खुश हुआ
तो कोई आज खुसी से पकवान बना रहा
बच्चों की टोली यह
कभी छत तो कभी गलियों में
किलकारियां सीटी लगा रहे
काली घटा छाई हैं
जो गिरी धरती पर पहली बूँद
देख ईसको किसान मुस्कराया
संग जग भी झूम रहा
जब चली हवाएँ और तेज
आंधी का यह रूप ले रही
लगता ऐसा कोई क्रांति अब सुरु हो रही
छुपा जो झूट अमीरों का
कहीं गली में गढ़ा तो कहीं
बड़ी बड़ी ईमारत यूँ ड़ह रही
अंकुर जो भूमि में सोये हुए थे
महसूस इस वातावरण को
वो भी अब फूटने लगे
देख बगीचे का माली यह
खुसी से झूम रहा
और कहता काली घटा छाई हैं
साथ अपने यह ढेर सारी खुशियां लायी हैं।
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7) Beautiful Hindi Kavita on Nature
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का।
गर्मी तो अभी दूर है वर्षा ना आएगी
फूलों की महक हर दिशा में फ़ैल जाएगी।पेड़ों में नई पत्तियाँ इठला के फूटेंगी
प्रेम की खातिर सभी सीमाएं टूटेंगी।
सरसों के पीले खेत ऐसे लहलहाएंगे
सुख के पल जैसे अब कहीं ना जाएंगे।आकाश में उड़ती हुई पतंग ये कहे
डोरी से मेरा मेल है आदि अनंत का।
लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का।ज्ञान की देवी को भी मौसम है ये पसंद
वातवरण में गूंजते है उनकी स्तुति के छंद।
स्वर गूंजता है जब मधुर वीणा की तान का
भाग्य ही खुल जाता है हर इक इंसान का।माता के श्वेत वस्त्र यही तो कामना करें
विश्व में इस ऋतु के जैसी सुख शांति रहे।
जिसपे भी हो जाए माँ सरस्वती की कृपा
चेहरे पे ओज आ जाता है जैसे एक संत का।लो आ गया फिर से हँसी मौसम बसंत का
शुरुआत है बस ये निष्ठुर जाड़े के अंत का।
8) Long Hindi Kavita on Nature
यह प्रकृति कुछ कहना चाहती हैं
यह प्रकृति कुछ कहना चाहती हैं,
अपने दिल का भेद खोलना चाहती हैं,
भेजती रही है हवाओं द्वारा अपना संदेशा।
ज़रा सुनो तो ! जो वह कहना चाहती हैं।उसका अरमान ,उसकी चाहत है क्या ?
सिवा आदर के वो कुछ चाहती है क्या ?
बस थोड़ा सा प्यार ,थोड़ा सा ख्याल,
यही तो मात्र मांग है इसकी,
और भला वह हमसे मांगती है क्या ?यह चंचल नदियां इसका लहराता आँचल,
है काले केश यह काली घटाओं सा बादल,
हरे -भरे वृक्ष ,पेड़ -पौधे और वनस्पतियां,
हरियाली सी साड़ी में लगती है क्या कमाल।
इसका रूप -श्रृंगार हमारी खुशहाली नहीं हैं क्या?है ताज इसका यह हिमालय पर्वत
उसकी शक्ति-हिम्मत शेष सभी पर्वत
अक्षुण रहे यह तठस्थता व् मजबूती
क्योंकि इसका गर्व है यह सभी पर्वत।
इसका यह गौरव हमारी सुरक्षा नहीं हैं क्या ?यह रंगीन बदलते हुए मौसम,
शीत ,वसंत ,ग्रीष्म औ सावन,
हमारे जीवन सा परिवर्तन शील यह,
और सुख-दुःख जैसे रात- दिन।
जिनसे मिलता है नित कोई पैगाम नया, क्या ?इस प्रकृति पर ही यदि निर्भरता है हमारी,
सच मानो तो यही माता भी है हमारी,
हमारे अस्तित्व की परिभाषा अपूर्ण है इसके बिना,
यही जीवनदायिनी व यही मुक्तिदायिनी है हमारी।अपने ही मूल से नहीं हो रहे हम अनजान क्या
हमें समझाना ही होगा ,अब तक जो ना समझ पाये,
हमारी माता की भाषा/अभिलाषा को क्यों न समझ पाय ,
दिया ही दिया उसने अब तक अपना सर्वस्व, कभी लिया नहीं,
इसके एहसानों , उपकारों का मोल क्यों ना चूका पाये।
आधुनिकता/ उद्योगीकरण ने हमें कृतघ्न नहीं बना दिया क्या?
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9) The Beauty of Nature Poem in Hindi Fonts
हैं सुहाना बड़ा तेरा ये जहां,
हैं रंग, प्यार ऑर खुशिया यहां
माना हैं गम, चुभन ऑर दर्द भी,
भुलाकर इन्हें जीते है लोग जिंदगी।
रंग सुनहरा लिए निकले जब रवि,
बिखेर दे सोना तब हर कहीं
हर सुबह लॉटाये एक जिंदगी नयी,
लहलाए खेत में फसले तब वहीं।
भुलकर पतझड को,हो रंगीन जब चमन,
खिले हर कली तब, जीत ले सबका मन
देकर महकभरी मुस्कराहट, फूल भी
बिखेरे तब खुशियों का दामन्
न जाने कहे क्या ये भॉरे,
कान में फूलों ऑर कलियों के
जब ढ्ले शाम सुनहरी,
छा जाए सोना बनकर छतरी,
खोजे आशियां अपना तब हर प्राणी।
चुराकर किरण सुरज से,
निकले चांद तब हॉले से
लेकर आए पॅगाम प्यार का,
फॅलाए तब धुंधला सबेरा
छा गए तारे भी आसमां पर,
चांदनी रात में बना दे चांद,
हर किसी को दिवाना, आशिक ऑर कवि।
10) Prakriti Par Kavita in Hindi Lyrics
प्रकृति। धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती
चाँद सूरज भी कहाँ अपने लिए चमकते हैं?
प्यार भरे दिल भी दूसरों के लिए धड़कते हैं
फूल- वृक्ष की डाली अपने लिए नहीं फलती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नही करती
मनुज तू ही क्यूं फिर अपने में लगा रहता हैं?
इस धरा की धारा में तू क्यूं नहीं बहता हैं?
यह इक बात है मेरे गले से नहीं उतरती,
प्रकृति तू हमको भी क्यूं अपना -सा नही करती?
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती,
नदियाँ पहाड़ों से अपने लिए नहीं उतरती|
बहे पवन फिर महके उपवन सभी के वास्ते
चले गगन फिर बरसे जल -धन सभी के वास्ते
दिखाती राह सच्चार्इ बने खुशी की परछाई,
करे प्रकाश लौ दीपक की सभी के वास्ते
रोशन आग काले अँधेरों के लिए होती ,
चमक सितारों की भी अपनी लिए नहीं होती।
रात तेरे बाद सुबह होने से नहीं मुकरती,
प्रकृति धरा पर कुछ भी अपने लिए नहीं करती।~धीरज शर्मा
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